मन के लालच की कैद से कैसे सजा मिलती है और सच का साथ देने से कैसे शीश उपर उठता है...!!! मन के लालच की कैद से कैसे सजा मिलती है और सच का साथ देने से कैसे शीश उपर उठता है...
इस शोर मचाती दुनिया के बीच अपनी आवाज़ की अलग ही खनक है। इस शोर मचाती दुनिया के बीच अपनी आवाज़ की अलग ही खनक है।
गम में भी चेहरा तो देखो जरा, किस तरह हंसी में सलामत है। गम में भी चेहरा तो देखो जरा, किस तरह हंसी में सलामत है।
अपनी ढाल मैं खुद हूँ, आत्मनिर्भर बनने दो मुझे। अपनी ढाल मैं खुद हूँ, आत्मनिर्भर बनने दो मुझे।
स्नेह से भरी चिट्ठी लिखी पर अफ़सोस रखी रह गई वहीं। स्नेह से भरी चिट्ठी लिखी पर अफ़सोस रखी रह गई वहीं।
मूंद लूँ मैं आँखें इत्मीनान के साथ गर मेरी ये इल्तिज़ा कबूल हो जाए। मूंद लूँ मैं आँखें इत्मीनान के साथ गर मेरी ये इल्तिज़ा कबूल हो जाए।